गर्व से कहें – हमें शर्म नहीं आती
पिछले कुछ दिनों की घटनाओं से कौन विचलित नहीं हुआ होगा। 16 अक्तूबर, 2015, दिन शुक्रवार, दिल्ली में अलग-अलग स्थानों से दो और पाँच साल की बच्चियों का अपहरण, उनके साथ सामूहिक बलात्कार। इन खबरों की स्याही अभी सूखी भी नहीं थी कि 19/20
अक्तूबर, 2015, दिन सोमवार, स्थान दिल्ली से सटे फ़रीदाबाद में एक परिवार को ज़िंदा जलाने की कोशिश, जिसमें दो नन्हें बच्चों की मृत्यु होती है और हम आनंदित हैं विजयपर्व मनाने
में, बुराई पर अच्छाई की विजय का पर्व।
हर उत्सव, हर त्यौहार समाज में एक नयी ऊर्जा
का संचार करता है। नारी शक्ति की पूजा सराहनीय है। देश-भर में दुर्गा पूजा के पंडाल
सजे हैं, रामलीलाओं में रावण, मेघनाथ और
कुंभकर्ण के अट्टहास और उनके पुतले ऊंचे होते जा रहे हैं, बाज़ारों
में रौनक बढ़ रही है। सब कुछ वैसे ही चल रहा
है, जैसे कि कुछ हुआ ही न हो। आनलाइन शॉपिंग, विंडो शॉपिंग, असली ख़रीदारी सब कुछ बदस्तूर जारी है, जैसे कि कुछ हुआ
ही न हो।
आरोप-प्रत्यारोप, राजनीतिक दांव-पेंच, मुआवज़े, अपराधियों की गिरफ्तारियों का दौर जारी है।
मुकदमे चलेंगे, शायद सजाएँ भी मिलेंगी,
मगर अपराध कम न होंगे। हत्या लेखक की हो, मुसलमान की हो या बच्चों की हो, क्या जमीन पर कोई सुधार
होगा – हमारी सोच में या कानून-व्यवस्था में? नहीं। क्यों?
हर दिशा में एक मौन गहरा रहा है। यह मौन इतना सुखद है कि हम इन मुद्दों की चर्चा
के लिए भी तैयार नहीं हैं। आखिर क्यों? ये
चार बच्चे क्या उन्हीं दम्पतियों के बच्चे थे? क्या हम, हमारे घर, बच्चों के स्कूल, ट्यूशन
सेंटर, मॉल, एप से बुक की हुई टैक्सी सब
सुरक्षित हैं? नहीं। क्यों?
प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री, गृहमंत्री, पुलिस, व्यवस्था, सब को भूल जाएँ। अपने-अपने स्तर पर संवाद करते रहें। बाज़ार, सड़क, मॉल, सब जगह चौकस रहें। मत ढूंढिए कि अपराध आपसी रंजिश से हुआ या जातिय
कारणों से। आगे बढ़ें, स्कूल, कॉलेज, ऑफिस, शहर, गाँव हर जगह से अपराध हटाएँ। शांत रहें। अफवाहों
पर ध्यान न दें। मौन को चुनें या मुखर को, अच्छे से इन पर नज़र
रखें। उत्तर प्रदेश,
कर्नाटक, दिल्ली, हरियाणा सब जगह अलग-अलग
दलों की सरकारें हैं, जो भी अपनी जिम्मेवारी से भागे, उसे अगले चुनाव में दूर तक खदेड़ आएं।
अन्यथा, गर्व से कहें – हमें शर्म नहीं आती। हम अपराध-युक्त वातावरण
में जीने और मरने को तैयार हैं।